Header Ads


पहला अध्याय - अर्जुनविषादयोग

अध्याय 1: अर्जुनविषादयोग - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 1 . 1

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |

मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय || १ ||

शब्दार्थ: धृतराष्ट्र: उवाच - राजा धृतराष्ट्र ने कहा; धर्म-क्षेत्रे - धर्मभूमि (तीर्थस्थल) में; कुरु-क्षेत्रे -कुरुक्षेत्र नामक स्थान में; समवेता: - एकत्र ; युयुत्सवः - युद्ध करने की इच्छा से; मामकाः -मेरे पक्ष (पुत्रों); पाण्डवा: - पाण्डु के पुत्रों ने; च - तथा; एव - निश्चय ही; किम - क्या; अकुर्वत -किया; सञ्जय - हे संजय ।

भावार्थ: धृतराष्ट्र ने कहा -- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 2

सञ्जय उवाच

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |

आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || २ ||

शब्दार्थ: सञ्जयः उवाच - संजय ने कहा; दृष्ट्वा - देखकर; तु - लेकिन; पाण्डव-अनीकम् - पाण्डवों की सेना को; व्यूढम् - व्यूहरचना को; दुर्योधनः - राजा दुर्योधन ने; तदा - उस समय; आचार्यम् - शिक्षक, गुरु के; उपसङ्गम्य - पास जाकर; राजा - राजा ; वचनम् - शब्द; अब्रवीत् - कहा ।

भावार्थ: संजय ने कहा - हे राजन! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता || ३ ||

शब्दार्थ: पश्य - देखिये; एतम् - इस; पाण्डु-पुत्राणाम् - पाण्डु के पुत्रों की; आचार्य -हे आचार्य (गुरु); महतीम् - विशाल; चमूम् - सेना को; व्यूढाम् - व्यवस्थित; द्रुपद-पुत्रेण - द्रुपद के पुत्र द्वारा; तव - तुम्हारे; शिष्येण - शिष्य द्वारा; धी-मता - अत्यन्त बुद्धिमान ।

भावार्थ: हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 4

अत्र श्रूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |

युयुधानो विराटश्र्च द्रुपदश्र्च महारथः || ४ ||

शब्दार्थ: अत्र - यहाँ; शूराः - वीर; महा-इषु -आसा - महान धनुर्धर; भीम-अर्जुन - भीम तथा अर्जुन; समाः - के समान; युधि - युद्ध में; युयुधानः - युयुधान; विराटः - विराट; च - भी; द्रुपदः - द्रुपद; च - भी; महारथः - महान योद्धा ।

भावार्थ: इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं - यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 5

धृष्टकेतुश्र्चेकितानः काशिराजश्र्च वीर्यवान् |

पुरुजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च नरपुङ्गवः || ५ ||

शब्दार्थ: धृष्टकेतु: - धृष्टकेतु; चेकितानः - चेकितान; काशिराजः - काशिराज; च - भी; वीर्यवान् - अत्यन्त शक्तिशाली; पुरुजित् - पुरुजित्; कुन्तिभोजः - कुन्तिभोज; च - तथा; शैब्यः - शैब्य; च - तथा; नरपुङ्गवः - मानव समाज के वीर ।

भावार्थ: इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 6

युधामन्युश्र्च विक्रान्त उत्तमौजाश्र्च वीर्यवान् |

सौभद्रो द्रौपदेयाश्र्च सर्व एव महारथाः || ६ ||

शब्दार्थ युधामन्युः - युधामन्यु; च - तथा; विक्रान्तः - पराक्रमी; उत्तमौजाः - उत्तमौजा; च - तथा; विर्यवान् - अत्यन्त शक्तिशाली; सौभद्रः - सुभद्रा का पुत्र; द्रौपदेवाः - द्रोपदी के पुत्र; च - तथा; सर्वे - सभी; एव - निश्चय ही; महारथाः - महारथी ।

भावार्थ: पराक्रमी युधामन्यु, अत्यन्त शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र - ये सभी महारथी हैं ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 7

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |

नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || ७ ||

शब्दार्थ अस्माकम् - हमारे; तु - लेकिन; विशिष्टाः - विशेष शक्तिशाली; ये - जो; निबोध - जरा जान लीजिये, जानकारी प्राप्त कर लें, द्विज-उत्तम - हे ब्राह्मणश्रेष्ठ; नायकाः - सेनापति, कप्तान; मम - मेरी; सैन्यस्य - सेना के; संज्ञा-अर्थम् - सूचना के लिए; तान् - उन्हें; ब्रवीमि - बता रहा हूँ; ते - आपको ।

भावार्थ: किन्तु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूँगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 8

भवान्भीष्मश्र्च कर्णश्र्च कृपश्र्च समितिंजयः |

अश्र्वत्थामा विकर्णश्र्च सौमदत्तिस्तथैव च || ८ ||

शब्दार्थ : भवान् - आप; भीष्मः - भीष्म पितामह; च - भी; कर्णः - कर्ण; च - और; कृपः - कृपाचार्य; च - तथा; समितिञ्जयः - सदा संग्राम-विजयी; अश्र्वत्थामा - अश्र्वत्थामा; विकर्णः - विकर्ण; च - तथा; सौमदत्तिः - सोमदत्त का पुत्र; तथा - भी; एव - निश्चय ही; च - भी।

भावार्थ: मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य; अश्र्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 9

अन्य च बहवः श्रूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः |

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः || ९ ||

शब्दार्थ : अन्ये - अन्य सब; च - भी; बहवः - अनेक; शूराः - वीर; मत्-अर्थे - मेरे लिए; त्यक्त-जीविताः - जीवन का उत्सर्ग करने वाले; नाना - अनेक; शस्त्र - आयुध; प्रहरणाः - से युक्त, सुसज्जित; सर्वे - सभी; युद्ध-विशारदाः - युद्धविद्या में निपुण ।

भावार्थ: ऐसे अन्य वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं । वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्धविद्या में निपुण हैं ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 10

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् || १० ||

शब्दार्थ : अपर्याप्तम् - अपरिमेय; तत् - वह; अस्माकम् - हमारी; बलम् - शक्ति; भीष्म - भीष्म पितामह द्वारा; अभिरक्षितम् - भलीभाँति संरक्षित; पर्याप्तम् - सीमित; तु - लेकिन; इदम् - यह सब; एतेषाम् - पाण्डवों की; बलम् - शक्ति; भीम - भीम द्वारा; अभिरक्षितम् - भलीभाँति सुरक्षित ।

भावार्थ: हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभाँति संरक्षित हैं, जबकि पाण्डवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभाँति संरक्षित होकर भी सीमित है ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 11

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः |

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि || ११ ||

शब्दार्थ : अयनेषु - मोर्चों में; च - भी; सर्वेषु - सर्वत्र; यथा-भागम् - अपने-अपने स्थानों पर; अवस्थिताः - स्थित; भीष्मम् - भीष्म पितामह की; एव - निश्चय ही; अभिरक्षन्तु - सहायता करनी चाहिए; भवन्तः - आप; सर्वे - सब के सब; एव हि - निश्चय ही ।

भावार्थ अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें ।


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 12

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः |

सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् || १२ ||

शब्दार्थ : तस्य – उसका; सञ्जयनयन् – बढाते हुए; हर्शम् – हर्ष; कुरु-वृद्धः – कुरुवंश के वयोवृद्ध (भीष्म); पितामहः – पितामह, बाबा; सिंह-नादम् – सिंह की सी गर्जना; विनद्य – गरज कर; उच्चैः - उच्च स्वर से; शङखम् – शंख; दध्मौ – बजाया; प्रताप-वान् – बलशाली |

भावार्थ: तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 13

ततः शङ्खाश्र्च भेर्यश्र्च पणवानकगोमुखाः |

सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोSभवत् || १३ ||

शब्दार्थ : ततः – तत्पश्चात्; शङखाः – शंख; भेर्यः – बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च – तथा; पणव-आनक – ढोल तथा मृदंग; गोमुखाः – शृंग; सहसा – अचानक; एव – निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त – एकसाथ बजाये गये; सः – वह; शब्दः – समवेत स्वर; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभवत् – हो गया |

भावार्थ: तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे | वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 14

ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |

माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||

शब्दार्थ : ततः – तत्पश्चात्; श्र्वैतैः – श्र्वेत; हयैः – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ – आसीन; माधवः – कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डव – अर्जुन (पाण्डुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङखौ – शंख; प्रदध्मतुः – बजाये |

भावार्थ: दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 15

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय |

पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः || १५ ||

शब्दार्थ : पाञ्चजन्यम् – पाञ्चजन्य नामक; हृषीकेशः – हृषीकेश (कृष्ण जो भक्तों की इन्द्रियों को निर्देश करते हैं) ने; देवदत्तम् – देवदत्त नामक शंख; धनम्-जयः – धनञ्जय (अर्जुन, धन को जितने वाला) ने; पौण्ड्रम् – पौण्ड्र नामक शंख; दध्मौ – बजाया; महा-शङखम् – भीष्म शंख; भीम-कर्मा – अतिमानवीय कर्म करने वाले; वृक-उदरः – (अतिभोजी) भीम ने |

भावार्थ: भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक शंख बजाया |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 16 - 18

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |

नकुलः सहदेवश्र्च सुघोषमणिपुष्पकौ || १६ ||

काश्यश्र्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः | धृष्टद्युम्नो विराटश्र्च सात्यकिश्र्चापराजितः || १७ ||

द्रुपदो द्रौपदेयाश्र्च सर्वशः पृथिवीपते | सौभद्रश्र्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् || १८ ||

शब्दार्थ : अनन्त-विजयम् – अनन्त विजय नाम का शंख; राजा – राजा; कुन्ती-पुत्रः – कुन्ती के पुत्र; युधिष्ठिरः – युधिष्ठिर; नकुलः – नकुल; सहदेवः – सहदेव ने; च – तथा; सुघोष-मणिपुष्पकौ – सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख; काश्य – काशी (वाराणसी) के राजा ने; च – तथा; परम-ईषु-आसः – महान धनुर्धर; शिखण्डी – शिखण्डी ने; च – भी; महा-रथः – हजारों से अकेले लड़ने वाले; धृष्टद्युम्नः – धृष्टद्युम्न (राजा द्रुपद के पुत्र) ने; विराटः – विराट(राजा जिसने पाण्डवों को उनके अज्ञात-वास के समय शरण दी ) ने; च – भी; सात्यकिः – सात्यकि (युयुधान, श्रीकृष्ण के साथी) ने; च – तथा; अपराजितः – कभी न जीते जाने वाला, सदा विजयी; द्रुपदः – द्रुपद, पंचाल के राजा ने; द्रौपदेयाः – द्रौपदी के पुत्रों ने; च – भी; सर्वशः – सभी; पृथिवी-पते – हे राजा; सौभादः – सुभद्रापुत्र अभिमन्यु ने; च – भी; महा-बाहुः – विशाल भुजाओं वाला; शङखान् – शंख; दध्मुः – बजाए; पृथक्-पृथक् – अलग अलग |

भावार्थ: हे राजन्! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्तविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये | महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों में अपने-अपने शंख बजाये |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् |

नभश्र्च पृथिवीं चैव तुमुलोSभ्यनुनादयन् || १९ ||

शब्दार्थ : सः – उस; घोषः – शब्द ने; धार्तराष्ट्राणाम् – धृतराष्ट्र के पुत्रों के; हृदयानि – हृदयों को; व्य्दारयत् – विदीर्ण कर दिया; नभः – आकाश; च – भी; पृथिवीम् – पृथ्वीतल को; च – भी; एव – निश्चय ही; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभ्यनुनादयन् – प्रतिध्वनित करता, शब्दायमान करता |

भावार्थ : इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 20

अथ व्यवस्थितान्दृष्टवा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः |

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः |

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते || २० ||

शब्दार्थ : अथ – तत्पशचात्; व्यवस्थितान् – स्थित; दृष्ट्वा – देखकर; धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को; कपिध्वजः – जिसकी पताका पर हनुमान अंकित है; प्रवृत्ते – कटिवद्ध; शस्त्र-सम्पाते – वाण चलाने के लिए; धनुः – धनुष; उद्यम्य – ग्रहण करके, उठाकर; पाण्डवः – पाण्डुपुत्र (अर्जुन) ने; हृषीकेशम् – भगवान् कृष्ण से; तदा – उस समय; वाक्यम् – वचन; इदम् – ये; आह – कहे; मही-पते – हे राजा

भावार्थ : उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ | हे राजन् ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 21 - 22

अर्जुन उवाच

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेSच्युत |

यावदेतान्निरिक्षेSहं योद्धुकामानवस्थितान् || २१ ||

कैर्मया सह योद्ध व्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || २२ ||

शब्दार्थ : अर्जुनः उवाच – अर्जुन ने कहा; सेन्योः – सेनाओं के; उभयोः – बीच में; रथम् – रथ को; स्थाप्य – कृप्या खड़ा करें; मे – मेरे; अच्युत – हे अच्युत; यावत् – जब तक; एतान् – इन सब; निरीक्षे – देख सकूँ; अहम् – मैं; योद्धु-कामान् – युद्ध की इच्छा रखने वालों को; अवस्थितान् – युद्धभूमि में एकत्र; कैः – किन किन से; मया – मेरे द्वारा; सः – एक साथ; योद्धव्यम् – युद्ध किया जाना है; अस्मिन् – इस; रन – संघर्ष, झगड़ा के; समुद्यमे – उद्यम या प्रयास में |

भावार्थ : अर्जुन ने कहा - हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 23

योत्स्यमानानवेक्षेSहं य एतेSत्र समागताः |

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः || २३ ||

शब्दार्थ : योत्स्यमानान् – युद्ध करने वालों को; अवेक्षे – देखूँ; अहम् – मैं; ये – जो; एते – वे; अत्र – यहाँ; समागता – एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य – धृतराष्ट्र के पुत्र कि; दुर्बुद्धेः – दुर्बुद्धि; युद्धे – युद्ध में; प्रिय – मंगल, भला; चिकीर्षवः – चाहने वाले |

भावार्थ: मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 24

सञ्जय उवाच एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत |

सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || २४ ||

शब्दार्थ : सञ्जयः उवाच – संजय ने कहा; एवम् – इस प्रकार; उक्तः – कहे गये; हृषीकेशः – भगवान् कृष्ण ने; गुडाकेशेन – अर्जुन द्वारा; भारत – हे भरत के वंशज; सेनयोः – सेनाओं के; उभयोः – दोनों; मध्ये – मध्य में; स्थापयित्वा – खड़ा करके; रथ-उत्तमम् – उस उत्तम रथ को |

भावार्थ: संजय ने कहा - हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किये जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 25

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् |

उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति || २५ ||

शब्दार्थ : भीष्म – भीष्म पितामह; द्रोण – गुरु द्रोण; प्रमुखतः – के समक्ष; सर्वेषाम् – सबों के; च – भी; महीक्षिताम् – संसार भर के राजा; उवाच – कहा; पार्थ – हे पृथा के पुत्र; पश्य – देखो; एतान् – इन सबों को; सम्वेतान् – एकत्रित; कुरुन् – कुरुवंश के सदस्यों को; इति – इस प्रकार |


भावार्थ : भीष्म, द्रोण तथा विश्र्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 26

तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान् |

आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा |

श्र्वश्रुरान्सुहृदश्र्चैव सेनयोरुभयोरपि || २६ ||

शब्दार्थ : तत्र – वहाँ; अपश्यत् – देखा; स्थितान् – खड़े; पार्थः – पार्थ ने; पितृन् – पितरों (चाचा-ताऊ) को; अथ – भी; पितामहान – पितामहों को; आचार्यान् – शिक्षकों को; मातुलान् – मामाओं को; भ्रातृन् – भाइयों को; पुत्रान् – पुत्रों को; पौत्रान् – पौत्रों को; सखीन् – मित्रों को; तथा – और; श्र्वशुरान् – श्र्वसुरों को; सुहृदः – शुभचिन्तकों को; च – भी; एव – निश्चय ही; सेनयोः – सेनाओं के; उभयोः – दोनों पक्षों की; अपि – सहित |

भावार्थ: अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिन्तकों को भी देखा |

💐💐💐💐


श्लोक 1 . 27

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् |

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् || २७ ||

शब्दार्थ : तान् – उन सब को; समीक्ष्य – देखकर; सः – वह; कौन्तेयः – कुन्तीपुत्र; सर्वान् – सभी प्रकार के; बन्धून् – सम्बन्धियों को; अवस्थितान् – स्थित; कृपया – दयावश; परया – अत्यधिक; आविष्टः – अभिभूत; विषीदन् – शोक करता हुआ; इदम् – इस प्रकार; अब्रवीत् – बोला;


भावार्थ : जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 28

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् |

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिश्रुष्यति || २८ ||

शब्दार्थ : अर्जुनः उवाच – अर्जुन ने कहा; दृष्ट्वा – देख कर; इमम् – इन सारे; स्वजनम् – सम्बन्धियों को; कृष्ण – हे कृष्ण; युयुत्सुम् – युद्ध की इच्छा रखने वाले; समुपस्थितम् – उपस्थित; सीदन्ति – काँप रहे हैं; मम – मेरे; गात्राणि – शरीर के अंग; मुखम् – मुँह; च – भी; परिशुष्यति – सूख रहा है |


भावार्थ: अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध कि इच्छा रखने वाले मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 29

वेपथुश्र्च शरीरे मे रोमहर्षश्र्च जायते |

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते || २९ ||

शब्दार्थ : वेपथुः – शरीर का कम्पन; च – भी; शरीरे – शरीर में; मे – मेरे; रोम-हर्ष – रोमांच; च – भी; जायते – उत्पन्न हो रहा है; गाण्डीवम् – अर्जुन का धनुष; गाण्डीव; स्त्रंसते – छूट या सरक रहा है; हस्तात् – हाथ से; त्वक् – त्वचा; च – भी; एव – निश्चय ही; परिदह्यते – जल रही है |

भावार्थ: मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है |

💐💐💐💐


श्लोक 1 . 30

न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः |

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव || ३० ||

शब्दार्थ : न – नहीं; च – भी; शक्नोमि – समर्थ हूँ; अवस्थातुम् – खड़े होने में; भ्रमति – भूलता हुआ; इव – सदृश; च – तथा ; मे – मेरा; मनः – मन; निमित्तानि – कारण; च – भी; पश्यामि – देखता हूँ; विपरीतानि – बिलकुल उल्टा; केशव – हे केशी असुर के मारने वाले (कृष्ण) |

भावार्थ: मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ | मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है | हे कृष्ण! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 31

न च श्रेयोSनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे |

न काड्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च || ३१ ||

शब्दार्थ : न – न तो; च – भी; श्रेयः – कल्याण; अनुपश्यामि – पहले से देख रहा हूँ; हत्वा – मार कर; स्वजनम् – अपने सम्बन्धियों को; आहवे – युद्ध में; न – न तो; काङक्षे – आकांक्षा करता हूँ; विजयम् – विजय; कृष्ण – हे कृष्ण; न – न तो; च – भी; सुखानि – उसका सुख; च – भी |

भावार्थ: हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार कि विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 32 - 35

किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा |

येषामर्थे काड्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च || ३२ ||

त इमेSवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च |

आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः || ३३ ||

मातुलाः श्र्वश्रुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा |

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोSपि मधुसूदन || ३४ ||

अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते |

निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीति स्याज्जनार्दन || ३५ ||

शब्दार्थ : किम् – क्या लाभ; नः – हमको; राज्येन – राज्य से; गोविन्द – हे कृष्ण; किम् – क्या; भोगैः – भोग से; जीवितेन – जीवित रहने से; वा- अथवा; येषाम् – जिनके; अर्थे – लिए; काङक्षितम् – इच्छित है; नः – हमारे द्वारा; राज्यम् – राज्य; भोगाः – भौतिक भोग; सुखानि – समस्त सुख; च – भी| ते – वे; इमे – ये; अवस्थिताः – स्थित; युद्धे – युद्धभूमि में; प्राणान् – जीवन को; त्यक्त्वा – त्याग कर; धनानि – धन को; च – भी; आचार्याः – गुरुजन; पितरः – पितृगण; पुत्राः – पुत्रगण; तथा – और; एव – निश्चय ही; च – भी; पितामहाः – पितामह| मातुलाः – मामा लोग; श्र्वशुरा – श्र्वसुर; पौत्राः – पौत्र; श्यालाः – साले; सम्बन्धिनः – सम्बन्धी; तथा – तथा; एतान् – ये सब; न – कभी नहीं; हन्तुम् – मारना; इच्छामि – चाहता हूँ; घ्रतः – मारे जाने पर; अपि – भी; मधुसूदन – हे मधु असुर के मारने वाले (कृष्ण)| अपि – तो भी; त्रै-लोकस्य – तीनों लोकों के; राज्यस्य – राज्य के; हेतोः – विनिमय में; किम् नु – क्या कहा जाय; महीकृते – पृथ्वी के लिए; निहत्य – मारकर; धार्तराष्ट्रान् – धृत राष्ट्र के पुत्रों को; नः – हमारी; का – क्या; प्रीतिः – प्रसन्नता; स्यात् – होगी; जनार्दन – हे जीवों के पालक |


भावार्थ: हे गोविन्द! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ! क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं वे ही इस युद्धभूमि में खड़े हैं | हे मधुसूदन! जब गुरुजन, पितृगण, पुत्रगण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्रगण, साले तथा अन्य सारे सम्बन्धी अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे समक्ष खड़े हैं तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूँगा, भले ही वे मुझे क्यों न मार डालें? हे जीवों के पालक! मैं इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों न मिलते हों, इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें | भला धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता मिलेगी?


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 36

पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः |

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्सबान्धवान् |

स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव || ३६ ||

शब्दार्थ : पापम् - पाप; एव – निश्चय ही; आश्र्येत् – लगेगा; अस्मान् – हमको; हत्वा – मारकर; एतान् – इन सब; आततायिनः – आततायियों को; तस्मात् – अतः; न – कभी नहीं; अर्हाः – योग्य; वयम् – हम; हन्तुम – मारने के लिए; धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को; स-बान्धवान् – उनके मित्रों सहित; स्व-जनम् – कुटुम्बियों को; हि – निश्चय ही; कथम् – कैसे; हत्वा – मारकर; सुखिनः – सुखी; स्याम – हम होंगे; माधव – हे लक्ष्मीपति कृष्ण |

भावार्थ: यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा, अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें | हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुम्बियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 37 - 38

यद्यप्येते न पश्यति लोभोपहतचेतसः |

कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् || ३७ ||

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् |

कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || ३८ ||

शब्दार्थ : यदि – यदि; अपि – भी; एते – ये; न – नहीं; पश्यति - देखते हैं; लोभ – लोभ से; उपहत – अभिभूत; चेतसः – चित्त वाले; कुल-क्षय – कुल-नाश; कृतम् – किया हुआ; दोषम् – दोष को; मित्र-द्रोहे – मित्रों से विरोध करने में; च – भी; पातकम् – पाप को; कथम् – क्यों; न – नहीं; ज्ञेयम् – जानना चाहिए; अस्माभिः – हमारे द्वारा; पापात् – पापों से; अस्मात् – इन; निवर्तितुम् – बन्द करने के लिए; कुल-क्षय – वंश का नाश; कृतम् – हो जाने पर; दोषम् – अपराध; प्रपश्यद्भिः – देखने वालों के द्वारा; जनार्दन – हे कृष्ण!

भावार्थ: हे जनार्दन! यद्यपि लोभ से अभिभूत चित्त वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते किन्तु हम लोग, जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों में क्यों प्रवृत्त हों?


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 39

कुल क्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः |

धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोSभिभवत्युत || ३९ ||

शब्दार्थ : कुल-क्षये – कुल का नाश होने पर; प्रणश्यन्ति – विनष्ट हो जाती हैं; कुल-धर्माः – पारिवारिक परम्पराएँ; सनातनाः – शाश्र्वत; धर्मे – धर्म; नष्टे – नष्ट होने पर; कुलम् – कुल को; कृत्स्नम् – सम्पूर्ण; अधर्मः – अधर्म; अभिभवति – बदल देता है; उत – कहा जाता है |

भावार्थ: कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 40

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः |

स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसड्करः || ४० ||

शब्दार्थ : अधर्म – अधर्म; अभिभावत् – प्रमुख होने से; कृष्ण – हे कृष्ण; प्रदुष्यन्ति – दूषित हो जाती हैं; कुलस्त्रियः – कुल की स्त्रियाँ; स्त्रीषु – स्त्रीत्व के; दुष्टासु – दूषित होने से; वार्ष्णेय – हे वृष्णिवंशी; जायते – उत्पन्न होती है; वर्ण–सङकरः – अवांछित सन्तान |

भावार्थ: हे कृष्ण! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और स्त्रीत्व के पतन से हे वृष्णिवंशी! अवांछित सन्तानें उत्पन्न होती हैं |


💐💐💐💐 श्लोक 1 . 41

सड्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |

पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः || ४१ ||

शब्दार्थ : सङकरः – ऐसे अवांछित बच्चे; नरकाय – नारकीय जीवन के लिए; एव – निश्चय ही; कुल-घ्नानाम् – कुल का वध करने वालों के; कुलस्य – कुल के; च – भी; पतन्ति – गिर जाते हैं; पितरः – पितृगण; हि – निश्चय ही; एषाम् – इनके; पिण्ड – पिण्ड अर्पण की; उदक – तथा जल की; क्रियाः – क्रिया, कृत्य |

भावार्थ: अवांछित सन्तानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परम्परा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है | ऐसे पतित कुलों के पुरखे (पितर लोग) गिर जाते हैं क्योंकि उन्हें जल तथा पिण्ड दान देने की क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 42

दोषैरेतै कुलघ्नानां वर्णसड्करकारकै: |

उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्र्च शाश्र्वताः || ४२ ||

शब्दार्थ : दोषैः – ऐसे दोषों से; एतैः – इन सब; कुलघ्नानाम् – परिवार नष्ट करने वालों का; वर्ण-सङकर – अवांछित संतानों के; कारकैः – कारणों से; उत्साद्यन्ते – नष्ट हो जाते हैं; जाति-धर्माः – सामुदायिक योजनाएँ; कुल-धर्माः – पारिवारिक परम्पराएँ; च – भी; शाश्र्वताः – सनातन |

भावार्थ: जो लोग कुल-परम्परा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित सन्तानों को जन्म देते हैं उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 43

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |

नरके नियतं वासो भवतीत्यनुश्रुश्रुम || ४३ ||

शब्दार्थ : उत्सन्न – विनष्ट; कुल-धर्माणाम् – पारिवारिक परम्परा वाले; मनुष्याणाम् – मनुष्यों का; जनार्दन – हे कृष्ण; नरके – नरक में; नियतम् – सदैव; वासः – निवास; भवति – होता है; इति – इस प्रकार; अनुशुश्रुम – गुरु-परम्परा से मैनें सुना है |

भावार्थ: हे प्रजापालक कृष्ण! मैनें गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 44

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः || ४४ ||

शब्दार्थ : अहो – ओह; बत – कितना आश्चर्य है यह; महत् – महान; पापम् – पाप कर्म; कर्तुम् – करने के लिए; व्यवसिता – निश्चय किया है; वयम् – हमने; यत् – क्योंकि; राज्य-सुख-लोभेन – राज्य-सुख के लालच में आकर; हन्तुम् – मारने के लिए; स्वजनम् – अपने सम्बन्धियों को; उद्यताः – तत्पर |

भावार्थ: ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्यत हो रहे हैं | राज्यसुख भोगने कि इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने सम्बन्धियों को मारने पर तुले हैं |


💐💐💐💐


श्लोक 1 . 45

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |

धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || ४५ ||

शब्दार्थ : यदि – यदि; माम् – मुझको; अप्रतिकारम् – प्रतिरोध न करने के कारण; अशस्त्रम् – बिना हथियार के; शस्त्र-पाणयः – शस्त्रधारी; धार्तराष्ट्राः – धृतराष्ट्र के पुत्र; रणे – युद्धभूमि में; हन्युः – मारें; तत् – वह; मे – मेरे लिए; क्षेम-तरम् – श्रेयस्कर; भवेत् – होगा |

भावार्थ: यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा ।


💐💐💐💐 श्लोक 1 . 46

सञ्जय उवाच

एवमुक्तवार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः || ४६ ||

शब्दार्थ : सञ्जयः उवाच – संजय ने कहा; एवम् – इस प्रकार; उक्त्वा – कहकर; अर्जुनः – अर्जुन; संख्ये – युद्धभूमि में; रथ – रथ के; उपस्थे – आसन पर; उपाविशत् – पुनः बैठ गया; विसृज्य – एक ओर रखकर; स-शरम् – बाणों सहित; चापम् – धनुष को; शोक – शोक से; संविग्न – संतप्त, उद्विग्न; मानसः – मन के भीतर |

भावार्थ: संजय ने कहा – युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया |


💐💐💐💐💐


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः। ॥1॥

কোন মন্তব্য নেই

Blogger দ্বারা পরিচালিত.